Swar and Vyanjan (स्वर और व्यंजन) हिंदी व्याकरण – Vowels and Consonants Hello Students हमारी मात्र भाषा हिंदी से सम्बंधित एक Complete हिंदी व्याकरण Swar and Vyanjan हिंदी व्याकरण जिसे English में Vowels and Consonants भी कहा जाता है पूरी जानकारी हिंदी के साथ आपसे पूरा चार्ट शेयर कर रहे है जो कि उदाहरण के साथ समझाया गया है यह स्वर और व्यंजन Vowels and Consonants हिंदी व्याकरण बहुत -सी परीक्षाओ मे पूछे जाते है जो भी Students हमारी इस Article को पढ़ेगा उनसे हम आशा करते है की वे इसे पूरा पढ़े और ध्यान से पढ़े पर्याप्त न होने पर google पर खोजे तो चलिए शुरू करते है
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Swar and Vyanjan (स्वर और व्यंजन) – Vowels & Consonants
स्वर और व्यंजन Swar and Vyanjan
हिंदी वर्णमाला में वर्णों को दो भागों में बाँटा गया है – १. स्वर २. व्यंजन।
स्वर और उसके भेद / प्रकार
स्वर : जिन वर्णों का स्वतंत्र उच्चारण किया जा सके या जिन ध्वनियों के उच्चारण के समय हवा बिना किसी रुकावट के निकलती है, वे स्वर कहलाते हैं, जैसे – अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, (ऋ), ए, ऐ, ओ, औ, (ऑ)।
यहाँ उल्लेखनीय है कि ऋ हिन्दी में उच्चारण की दृष्टि से स्वर नहीं है, लेखन की दृष्टि से ऋ स्वर है । इसी प्रकार ऑ अंग्रेजी के डॉक्टर, कॉलेज, नॉलेज आदि शब्दों में उच्चारण के कारण स्वर के रूप में प्रचलित हो गया है । अतः ऑ उच्चारण की दृष्टि से स्वर है ।
नोट : मानक रूप से हिंदी में स्वरों की संख्या 11 मानी गई है। निम्नलिखित वर्णों को कई जगह स्वर के रूप में लिखा जाता है जो कि गलत है।
अनुस्वार : अं विसर्ग : अः
Swar स्वर के प्रकार :
उच्चारण में लगने वाले समय के आधार पर स्वर के दो (प्लुत सहित तीन) प्रकार हैं:
ह्स्व स्वर : जिन स्वरों के उच्चारण में सबसे कम समय लगता है, उन्हें ह्स्व स्वर कहते हैं, जैसे – अ, इ, उ, (ऋ) । ऋ का प्रयोग केवल संस्कृत के तत्सम शब्दों में होता है, जैसे – ऋषि, ऋतु, कृषि आदि ।
- दीर्घ स्वर : जिन स्वरों के उच्चारण में ह्स्व स्वरों से अधिक समय लगता है, उन्हें दीर्घ स्वर कहते हैं, जैसे – आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ, (ऑ) ।
- प्लुत स्वर : जिन स्वरों के उच्चारण में दीर्घ स्वरों से भी अधिक समय लगता है, उन्हें प्लुत स्वर कहते हैं, जैसे – ओऽम, सुनो ऽ ऽ।
नोट – दीर्घ स्वर स्वतंत्र ध्वनियाँ हैं न कि हृस्व स्वरों का दीर्घ रूप।
यहाँ उल्लेखनीय है कि ऐ तथा औ का उच्चारण संध्यक्षर (संयुक्त स्वर) के रूप में भी किया जा सकता है, जैसे – (ऐ = अ+इ), व (औ = अ+उ) । यह उच्चारण तब होता है जब बाद में क्रमशः ‘य’ और ‘व’ आएँ, जैसे –भैया = भइया व कौवा = कउवा
ऐ और औ का प्रयोग शुद्ध स्वर की तरह प्रयोग होता ही है, जैसे – मैल, कैसा, औरत आदि ।
याद रहे आप Swar and Vyanjan (स्वर और व्यंजन) से सम्बंधित विषय पढ़ रहे है
स्वरों के होठों की आकृति के आधार पर भी दो प्रकार हैं:
- अवृत्ताकर : जिन स्वरों के उच्चारण में होठ वृत्ताकार न होकर फैले रहते हैं, उन्हें अवृत्ताकर स्वर कहते हैं, जैसे – अ, आ, इ, ई, ए, ऐ, ।
वृत्ताकर : जिन स्वरों के उच्चारण में होठ वृत्ताकार (गोल) होते हैं, उन्हें वृत्ताकार स्वर कहते हैं, जैसे – उ, ऊ, ओ, औ, (ऑ) ।
स्वर के अन्य प्रकार :
- निरनुनासिक स्वर : जब स्वरों का उच्चारण केवल मुख से होता है, उन्हें निरनुनासिक स्वर कहते हैं, जैसे – अ – सवार ।
- अनुनासिक स्वर : जब स्वरों का उच्चारण मुख व नासिका दोनों से होता है, उन्हें अनुनासिक स्वर कहते हैं, जैसे – अँ – सँवार । लिखने में स्वर के ऊपर अनुनासिकता के लिए चंद्रबिन्दु (ँ) का प्रयोग करते हैं, मगर जब स्वर की मात्रा शिरोरेखा के ऊपर लगती है, तो चंद्रबिन्दु (ँ) के स्थान पर मात्र (.) का प्रयोग करते हैं, जैसे – कहीं, नहीं, मैं, हैं आदि ।
अनुनासिक स्वर और अनुस्वार में मूल अंतर यही है कि अनुनासिक स्वर स्वर है जबकि अनुस्वार अनुनासिक व्यंजन का एक रूप है, जैसे – अनुस्वार के साथ – हंस , अनुनासिकता के साथ – हँस (ना)
Vyanjan व्यजंन और उसके भेद / प्रकार
व्यंजन : जिन वर्णों का उच्चारण स्वरों की सहायता से किया जाता हो या जिन ध्वनियों के उच्चारण के समय हवा रुकावट के साथ मुँह के बाहर निकलती निकलती है, वे व्यंजन कहलाते हैं, जैसे – क, ग, च, द, न, प, ब, य, ल, स, ह आदि।
- मूल व्यंजन
क ख ग घ ङ
च छ ज झ ञ
ट ठ ड ढ ण
त थ द ध न
प फ ब भ म
य र ल व
श ष स ह - उत्क्षिप्त व्यंजन
ड़ ढ़ - संयुक्ताक्षर व्यंजन
क्ष त्र ज्ञ श्र
व्यंजन के भेद एवं प्रकार
- स्थान के आधार पर व्यंजन के भेद
उच्चारण के स्थान (मुख के विभिन्न अवयव) के आधार पर – कंठ, तालु आदि
कंठ्य : (गले से) क ख ग घ ङ - तालव्य : (तालू से) च छ ज झ ञ य श
- मूर्धन्य : ( तालू के मूर्धा भाग से) ट ठ ड ढ ण ड़ ढ़ ष
- दन्त्य : (दांतों के मूल से) त थ द ध न
- वर्त्स्य : (दंतमूल से) (न) स ज़ र ल
- ओष्ठ्य : (दोनों होठो से) प फ ब भ म
- दंतोष्ठ्य : (निचले होठ और ऊपर के दांतों से) व फ़
- स्वरयंत्रीय : (स्वरयंत्र से) ह
प्रयत्न के आधार पर व्यंजन के भेद
स्वरतंत्री में कंपन के आधार पर – अघोष और सघोष
- अघोष : जिन ध्वनियों का उच्चारण स्वरतंत्रियों में कंपन के बिना होता है, उनको अघोष व्यंजन कहते हैं; जैसे – क, ख, च, छ, ट, ठ, त, थ, प, फ (वर्णों के प्रथम तथा द्वितीय व्यंजन) फ़ श ष स ।
- सघोष : जिन ध्वनियों का उच्चारण स्वरतंत्रियों में कंपन के साथ होता है, उनको सघोष व्यंजन कहते हैं; जैसे – ग, घ, ङ, ज, झ, ञ, ड, ढ, ण, द, ध, न, ब, भ, म (वर्णों के तृतीय, चतुर्थ और पंचम व्यंजन) ड़ ढ़ ज य र ल व ह
सभी स्वर
श्वास (प्राण) की मात्रा के आधार पर – अल्पप्राण और महाप्राण
- अल्पप्राण : जिन ध्वनियों के उच्चारण में श्वास वायु की मात्रा कम होती है, उनको अल्पप्राण व्यंजन कहते हैं; जैसे – क ग ङ च ज ञ ट ड ण त द न प ब म (वर्णों के प्रथम, तृतीय और पंचम) ड़ य र ल व
- महाप्राण : जिन ध्वनियों के उच्चारण में श्वास वायु की मात्रा अधिक होती है, उनको महाप्राण व्यंजन कहते हैं; जैसे – ख घ छ झ ठ ढ थ ध फ भ (वर्णों के द्वितीय और चतुर्थ) ढ़ ह
श्वास के अवरोध के आधार पर – स्पर्श और संघर्षी - स्पर्श व्यंजन : (क वर्ग से प वर्ग तक, च वर्ग के आलावा)
क ख ग घ ङ
ट ठ ड ढ ण
त थ द ध न
प फ ब भ म - स्पर्श-संघर्षी व्यंजन : च छ ज झ ञ (च वर्ग)
- अंत:स्थ व्यंजन : य र ल व
- उष्म (संघर्षी) व्यंजन : श ष स ह
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स्वर और व्यंजन से जो शब्द रचना होती उसका जैसे
अंगुर उसका मुझे अ+ग+रू
ऐसा शब्द कौइ भी नाम फुल पौधे का नाम डालने पर उ का शब्दार्थ आना चाहिए